– कोरोना के बावजूद संक्रामक रोगों को सीमित रखने में मिली कामयाबी
– जूम मीटिंग में स्वास्थ्य व मीडिया कर्मी हुए शामिल उरई/जालौन। कोरोना काल में संक्रामक रोगों का प्रबंधन विषय पर आयोजित वेबिनार मीटिंग में स्वास्थ्य अधिकारी सहित कई मीडिया कर्मी शामिल हुए। वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने इसके विभिन्न पहलुओं को समझाया। उन्होंने कोरोना से निपटने के साथ ही दूसरी संक्रामक बीमारियों के खतरे पर भी पर्याप्त ध्यान देने पर जोर दिया।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की डॉ रजनी कांत श्रीवास्तव ने कहा यहां स्वास्थ्य के संसाधन सीमित हैं। साथ ही स्वास्थ्य समस्याएं भी अधिक हैं। देश में मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और फाइलेरिया जैसी संक्रामक बीमारियों की समस्या बनी हुई है। ऐसे में कोरोना के आने के बाद इन बीमारियों के नियंत्रण उपायों पर प्रभाव जरूर पड़ा। लेकिन देश में कहीं ऐसा नहीं हुआ कि मलेरिया को डेंगू का प्रकोप काफी बढ़ गया हो। इन बीमारियों को भी काफी नियंत्रण में रखा जा सका। दूसरी संक्रामक बीमारियों से नियंत्रण को फास्ट ट्रैक मोड में ले जाना होगा। इनके लिए अलग से संसाधनों को उपलब्ध रखना होगा। डॉ पूनम सलोत्रा ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र का मानव संसाधन बड़ी मात्रा में कोविड.19 से निपटने में व्यस्त है। ऐसे में दूसरी बीमारियों की उपेक्षा की आशंका रहती है, जिसे हमें रोकना है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान पटना में एसोसिएट प्रोफेसर और बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी विभाग की प्रमुख डॉ वीणा सिंह ने भी संक्रामक रोगों के बारे में बताया।
कोरोना ने कई सीख भी दी –
डॉ पूनम सलोत्रा ने कहा कि कोरोना की आपदा ने लोक स्वास्थ्य व्यवस्था को कई तरह की सीख भी दी है। जिस तरह कोरोना टीका विकसित करने की तेज प्रक्रिया अपनाई गई है। वह दूसरी बीमारियों के टीके के लिए भी अपनाई जा सकेगी। देश में बीमारियों की जांच को ले कर एक नया मजबूत ढांचा बन सका है। जो मोलेक्युलर जांच पहले सिर्फ बड़े केंद्रों पर होती थी, उसे अब दूर.दराज के इलाकों में भी उपलब्ध करवाया जा सकेगा।