– जैसारी माइनर में बांध लगाकर पलेवा का पानी रोक रहे किसान
– मुहम्मदाबाद, कुठौंदा, बड़ेरा आदि गांवों के किसानों को नहीं मिल रहा पलेवा के लिए पानी डकोर/जालौन। 1 अक्टूबर से खेतों में पलेवा के लिए चलाई गई नहरों व माइनरों का लाभ सीमित व छोटे किसानों को नहीं मिल रहा है। दबंग किसान नहरों व माइनरों में पटिए डालकर पानी को अवरुद्ध किए हुए हैं। इससे आगे के किसानो को लाभ नहीं मिल रहा है जबकि जिलाधिकारी के खास निर्देश हैं कि कोई भी किसान नहरों व माइनरों को अवरुद्ध करके नहरों व माइनरों में कटान नहीं करेगा मगर विभाग की उदासीनता के कारण दबंग किसान नहरों व माइनरों को अवरुद्ध करके कटान किए हुए हैं।
डकोर क्षेत्र में किसानों के खेतों में पलेवा के लिए प्रशासन द्वारा नहरों व माइनरों में छोड़ा गए पानी का लाभ छोटे व सीमांत किसानों को नहीं मिल रहा है जबकि नहरों में पानी को छोड़े हुए एक सप्ताह बीत गया। अभी तक मुहम्मदाबाद, कुठौंदा, बड़ेरा, अजनारी आदि गांवों के किसानों के खेतों तक पानी नहीं पहुंच सका है। एेसे में छोटे किसान खेतों में पलेवा करने के लिए भटक रहे हैं। जैसारी माइनर में आगे गांव के दबंग किसान नहरों व माइनर में पटिए डालकर और माइनर में कटान कर पलेवा के पानी को रोके हुए हैं। इससे आगे के गांवों के किसानों को पानी नहीं मिल रहा है। पानी का अंधाधुंध दोहन होने से आने वाले दिनों में होने वाले पानी संकट की स्थिति बनने लगी है। इसके बावजूद न तो सिंचाई विभाग इस पर ध्यान दे रहा है और न ही प्रशासन। साथ ही विभाग पानी के दोहन पर रोक लगाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है जबकि जिलाधिकारी डा. मन्नान अख्तर के खास निर्देश हैं कि कोई भी किसान माइनरों व नहरों को नहीं रोकेगा और न ही माइनर व नहरों में कटान करेगा। इसके बावजूद दबंग लोग पानी को अवरुद्ध किए हुए हैं।
जल स्रोत से पानी लेने के लिए ये हैं नियम –
सिंचाई विभाग के तालाब और नहरों से पानी लेने के पूर्व किसानों को विभाग से एक अनुबंध कराना होता है। इसके लिए विभाग के अमीन से अनुबंध पत्र लेकर फार्म भरा जाता है। फार्म जल उपभोक्ता संस्था के चुनाव के समय क्षेत्र के किसानों की बनने वाली सूची के आधार पर तय होती है। इसमें किसानों के नाम और उनकी जमीन का रकवा दर्ज होता है। इसमें फसल के हिसाब से शासन स्वीकृत दर से किसानों को पानी देता है। इसमें गेहूं फसल में एक पलेवा, दो पानी के बदले में किसान से प्रति हेक्येटर के मान से ढाई सौ रुपए शुल्क की बाद में रसीद काटकर वसूली की जाती है।