नई दिल्ली (न्यूज़ एजेंसी) ट्रेन के एसी डिब्बों पर उठ रहे सवालों के बीच अब रेलवे ने ऐसी व्यवस्था की है कि इन डिब्बों में कोरोना वायरस के फैलने का खतर कम से कम रह जाएगा। रेलवे ने अपने जर्मन डिब्बों की छत पर लगे एसी मशीनरी के प्रोग्रामिंग में कुछ ऐसा बदलाव किया है कि अब मशीन डिब्बे में हर 3 मिनट में नई हवा फेंक रही है। इससे ठंडी हवा में वायरस के फैलने का खतरा न्यूनतम हो जाएगा।
ज्ञातव्य है कि अस्पतालों के आपरेशन थियेटरों में ऐसी ही एयर कंडीशनरों की व्यवस्था होती है ताकि मरीजों में संक्रमण नहीं फैले। रेलवे बोर्ड में रोलिंड स्टॉक विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि यूं तो पहले भी रेलगाड़ी के हर एसी डिब्बें में कुछ अंतराल में हवा बदली जाती थी, लेकिन कुछ अंतराल में। इस समय जर्मन तकनीक वाले एलएचबी डिब्बों में लगे रूफ माउंटेड एसी पैकेज (आरएमपीयू) में ऐसी व्यवस्था है कि वह हर 10 मिनट में नई हवा फेंकते हैं। लेकिन कोरोना काल में जो 15 जोड़ी राजधानी स्पेशल चलाये गए हैं। उनमें आरएमपीयू की प्रोग्रामिंग में कुछ बदलाव किया गया। बदलाव के बाद उन डिब्बों में हर 3 मिनट में नई हवा आती है। ऐसा ही व्यवस्था ऑपरेशन थिएटरों में लगे एयर कंडीशनिंग मशीन में होती है। कोरोना संक्रमण को देखते हुए इन दिनों रेलवे के एसी डिब्बों में मिलने वाले चादर, तकिये और कंबल की सुविधा वापस ले ली गई है। रेलवे का कहना है कि चादर और तकिये के खोल तो हर उपयोग के बाद धुलते हैं, लेकिन कंबल का फ्यूमिगेशन तो एक अंतराल के बाद ही हो पाता है। इसी तरह तकिये की भी धुलाई रोज-रोज नहीं होती। इसलिए डिब्बे के अंदर का तापमान बढ़ा दिया गया है। पहले एसी डिब्बों में अंदर का तापमान 22 से 13 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता था, जिसे इन दिनों बढ़ा कर 25 डिग्री कर दिया गया है। अधिकारी का कहना है कि जब लॉकडाउन के बीच ही रेलवे सेवा शुरू की जानी थी, तब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से रेलवे को कई सुझाव मिले थे। उसी के आधार पर न सिर्फ रेल डिब्बों में मामूली फेर-बदल किया गया, बल्कि एसी डिब्बों में अंदर लगे परदों को भी हटा दिया गया। स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना था कि डिब्बे के परदे हर यात्रा के बाद तो बदले नहीं जाएंगे। ऐसे में इसके लगे रहने का कोई तुक नहीं है। राजधानी एक्सप्रेस का सफर अपने लजीज व्यंजनों के लिए भी याद किया जाता है। लेकिन ट्रेन में 1,000 से भी ज्यादा यात्रियों के लिए खाने-पीने के सामाना ट्रेन में ही बनाना जरा मुश्किल काम है। इसलिए कोराना काल में चलाये जा रहे इन स्पेशल ट्रेनों में लजीज व्यंजन नहीं दिया जा रहा है।