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औपचारिकताओं में समिट कर रह गया वृक्षारोपण – पं० विजय द्विवेदी

सरकार को कठोर कानून के साथ जिम्मेदारी तय करनी होगी
उरई/जालौन। आजकल वृक्षारोपण एक दिखावा हो गया है, खास तौर से भारतवर्ष में। वर्षा ऋतु आने के पूर्व प्रति वर्ष जुलाई/अगस्त माह में करोड़ों की संख्या में वृक्षारोपण किया जाता है। सरकार द्वारा ग्राम प्रधान, नगर पालिका/नगर पंचायत अध्यक्षों, विभिन्न विभागों, समाजसेवियों, स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से पुरजोर ढंग से वृक्षारोपण करवा कर अरबों रुपया पानी की तरह बहा दिया जाता है। सरकार का यह प्रयास तो सकारात्मक है यदि यह वृक्ष वास्तव में धरातल पर लगाने के बाद उन्हें 10% भी संरक्षित कर लिये जाए तो एक सफल प्रयास माना जाएगा किंतु आश्चर्यजनक तो यह है कि पिछले 25 वर्ष पहले हमारे बीच जितनी संख्या में वृक्ष थे उन्हें संरक्षित करने एवं उनके परिवार की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार ने अरबों खरबों रुपया खर्च किया। ऊर्जा व्यय की किंतु परिणाम ‘ढांक के तीन पात’ वृक्षों का कुनवा बढ़ने के स्थान पर घटता जा रहा है।
आश्चर्यजनक तो यह है कि वृक्षों का संरक्षण करने और उनकी संख्या बढ़ाने के लिए वकायदा एक विभाग (वन विभाग) काम करता है। उसमें राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रदेश, जिला, परिक्षेत्र, ब्लॉक व गांव स्तर पर अधिकारी कर्मचारियों की तैनाती की गई है। उन्हें वृक्षों का संरक्षण व वृद्धि करने के लिए कानूनी अधिकार दिया गया। इस विभाग को पावरफुल/शक्तिशाली बनाए रखने के लिए बड़े-बड़े भवन, बड़े-बड़े परिसर, कार्यालय, वाहन, प्रतिमाह अरबों रुपया वेतन उपलब्ध कराया जा रहा है किंतु पिछले 25 वर्षों से वृक्षों की संख्या बढ़ने के स्थान पर निरंतर कम होती जा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह विभाग वृक्षों की संख्या कम करने के लिए ही संचालित है।
गत वर्ष उत्तर प्रदेश में 15 करोड़ वृक्षारोपण एक दिन में हुआ यदि सत्यापन कराया जाए तो उन वृक्षों में दो हजार वृक्ष भी जीवित नहीं बचे है। जबकि बीते 1 वर्ष में कम से कम दो तीन लाख वृक्षों को विकास के नाम पर धराशाई किया गया है। गत वर्षो की भांति इस वर्ष भी उत्तर प्रदेश सरकार ने 25 करोड़ वृक्ष एक दिन में ही रोपित करने का संकल्प लिया है यदि यह वृक्ष वास्तव में रोपित और संरक्षित हो जाएं इनमें यदि 50% भी वृक्ष जीवित बचे रहे तो उत्तर प्रदेश हरा-भरा प्रदेश हो जाएगा “लेकिन ऐसा होगा नही” वृक्षारोपण का शोर बहुत होगा।
एक वृक्ष को रोपित करने में चार पांच या दर्जनभर लोग प्रयास कर रहे होंगे। कोई तना पकड़े कोई पत्ते, कोई यूं ही बिना कुछ स्पर्श किए वृक्ष की तरफ हाथ फैलाए वृक्षारोपण करने की नौटंकी दिखा रहे होंगे। ऐसे नजारे जुलाई-अगस्त के अखबारों एवं सोशल मीडिया पर आम बातें हैं। इन महीनों में खबरें आती हैं कि आज फलां विभाग, फलां संगठन, फलां अधिकारी, नेता, मंत्री ने वृक्षारोपण किया उनके रंगीन चित्र अखबारों की सुर्खियां बटोर रहे होते हैं लेकिन अनेक ऐसी बातें हैं जो इनकी इस नौटंकी की पोल खोल देती हैं। जैसे आप किसी सरकारी दफ्तर की दीवारों पर चिपकी पिछली चार पांच बरसों की वृक्षारोपण की तस्वीरें देखकर वृक्षारोपण वाली जगह को पहचाने का प्रयास करें तो आपको प्रतिवर्ष वही एक जगह दिख जाएगी। लेकिन धरातल पर वर्तमान में वहां आज एक भी वृक्ष नही मिलेगा।
इस वर्ष जुलाई/अगस्त में इसी जगह पर वृक्षारोपण करने की तैयारी हो रही होगी। कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो वृक्ष हमारे जीवन का आधार है उन्हें लगाने एवं उनके पालन पोषण करने के प्रति हमारी संवेदनशीलता 0% है। जो भविष्य की पीढ़ी के लिए घातक है। दुःखद यह है कि वन विभाग एवं प्राइवेट नर्सरीयों में प्रतिवर्ष करोड़ों वृक्ष अंकुरित कर उन्हें जीवन दिया जाता है लेकिन इन बेजुबान प्राणी वृक्षों को पुष्पित पल्लवित होने के पूर्व ही उनकी हत्या करने के लिए किसी भी जगह जमीन में लगाकर बेसहारा छोड़ दिया जाता है जो बेचारे मानव जाति की बेपरवाही की भेंट चढ़कर असमय ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। वृक्षों की यह हत्या उसी प्रकार है जैसे किसी नवजात शिशु को बिना भोजन पानी के निर्जन स्थान पर धूप में मरने के लिए फेंक दिया जाता है।
यदि सरकार वास्तव में अपनी वसुधा को हरा भरा देखना चाहती है तो उसे दृढ़ निश्चय करना होगा एवं कुशल रणनीति बनानी होगी जिसमें वृक्ष लगाने और उनका संरक्षण करने की जिम्मेदारी तय करना होगी जैसे प्रदेश में विभिन्न विभाग हैं उनमें लगभग तीस लाख कर्मचारी/अधिकारी लोक सेवक के रूप में कार्य कर रहे हैं यदि सरकार इनको सेवाकाल में प्रति दो वृक्ष लगाना, उनका संरक्षण करना एवं स्थानांतरण होने पर चार्ज के रूप में वृक्षों का दायित्व हस्तांतरण करना सुनिश्चित कर दें तो एक बार में ही साठ लाख वृक्ष गारंटी के साथ लगाए जा सकते हैं तथा उनका संरक्षण भी सुनिश्चित हो सकेगा।
यदि किसी कर्मचारी अधिकारी का वृक्ष क्षतिग्रस्त हो जाए तो उसे तत्काल दूसरा वृक्ष रोपित करना सुनिश्चित कराया जाए। इसी प्रकार प्रति किसान को प्रति एकड़ एक वृक्ष लगाना, प्रति राशन कार्ड धारक को एक वृक्ष लगाना व संरक्षित करना अनिवार्य कर दिया जाए अन्यथा उनकी सुविधाओं में कटौती करने के कानून का प्रवधान जाए, वर्तमान वृक्षों की गणना की जाए वह जिस विभाग की अथवा कृषक या आम नागरिक की सीमा में हो उन्हें उसका उत्तरदाई माना जाए तभी हमारा प्रदेश हरा भरा हो सकता है। प्रभावशाली योजना एवं कठोर कानून के बिना हवा हवाई काम करना, प्रतिवर्ष एक ही भूमि पर वार वार पौधों को लगाना और पौधा रोपित करते समय आधा दर्जन लोगों के द्वारा फोटो खिंचवाए जाने की नौटंकी से न तो प्रदेश में हरियाली होगी न मानव जीवन में हरियाली आएगी।

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